मिथिला की पावन भूमि पर भक्ति की पराकाष्ठा का यदि कोई प्रमाण है, तो वह महाकवि विद्यापति और भगवान शिव (उगना) की कथा है। जब त्रिभुवन के स्वामी एक भक्त के प्रेम में बंधकर 'चाकर' (नौकर) बन गए, तो इतिहास रचा गया। यह वही ऐतिहासिक क्षण है जब रेगिस्तान में प्यासे महाकवि विद्यापति को 'उगना' बने भगवान शिव ने जल पिलाया। इसी घटना से उनका भेद खुला और कालांतर में ' उगना रे मोर कतय गेला ' नचारी की रचना हुई। आज हम विद्यापति की उस प्रसिद्ध नचारी (Nachari) "उगना रे मोर कतय गेला" का विश्लेषण करेंगे। यह रचना केवल एक Maithili Kavita नहीं, बल्कि एक भक्त का करुण विलाप है। साहित्य जगत में अक्सर यह बहस होती है कि विद्यापति भक्त कवि थे या शृंगारिक , परन्तु इस नचारी को पढ़कर उनकी निश्छल भक्ति का ही प्रमाण मिलता है। इस लेख में आप पढ़ेंगे: उगना महादेव की कथा मैथिली लिरिक्स (Devanagari) Hinglish Lyrics Video Song हिंदी भावार्थ उगना और विद्यापति: भक्ति की एक अमर कथा किंवदंतियों और ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, विद्यापति की शिव भक्ति से प...
मिथिला की संस्कृति, यहाँ के लोकगीत और यहाँ की मिठास पूरी दुनिया में अद्वितीय है। विवाह संस्कार में जब नई नवेली दुल्हन (दुलहिन) ससुराल की गलियों में कदम रखती है, तो यह गीत 'दुलहिन धीरे-धीरे चलियौ' (Dulhin Dhire Dhire Chaliyau) एक मीठी हिदायत और स्वागत के रूप में गाया जाता है। 'दुल्हा धीरे-धीरे चल्यो' जैसे गीत इन्ही पारंपरिक रस्मों की शोभा बढ़ाते हैं। जिस प्रकार महाकवि विद्यापति ने मैथिली साहित्य को ऊंचाइयों पर पहुँचाया, उसी प्रकार हमारे पारंपरिक विवाह गीतों ने हमारी संस्कृति को जीवित रखा है। नीचे इस प्रसिद्ध गीत के लिरिक्स, हिंग्लिश अनुवाद और पीडीएफ डाउनलोड लिंक दिए गए हैं। Maithili Lyrics: Dulhin Dhire Dhire Chaliyau दुलहिन धीरे-धीरे चलियौ ससुर गलिया, दुलहिन धीरे-धीरे चलियौ ससुर गलिया। ससुर गलिया हो, भैंसूर गलिया, दुलहिन सासु सँ बोलियौ मधुर बोलिया। दुलहिन धीरे-धीरे चलियौ ससुर गलिया। मधुर बोलिया हो, अनार कलिया, मधुर बोलिया हो, अनार कलिया। दुलहिन ननदि के दियौ हजार डलिया, दुलहिन धीरे-धीरे चलियौ ससुर गलिया। हजार डलिया हो, गुलाब कलिया, हजार डलिया हो, गुल...