बादल को घिरते देखा है: कविता और भावार्थ
परिचय: हिंदी साहित्य के प्रगतिवादी कवि बाबा नागार्जुन की यह कविता 'बादल को घिरते देखा है' प्रकृति प्रेम और यथार्थवाद का बेजोड़ उदाहरण है। यह उनके काव्य संग्रह 'युगधारा' से ली गई है।
अक्सर छात्र “Badal Ko Ghirte Dekha Hai summary in Hindi” या “बादल को घिरते देखा है कविता का भावार्थ” सर्च करते हैं। इसी को ध्यान में रखकर यहाँ हम इस कविता का Stanza-wise Meaning, सरल व्याख्या और परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु दे रहे हैं।
नीचे हम पूरी कविता का Stanza-wise Meaning (पद-व्याख्या) और शब्दार्थ प्रस्तुत कर रहे हैं।
1. हिमालय और मानसरोवर का दृश्य
अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
📚 शब्दार्थ (Word Meaning):
- अमल धवल: स्वच्छ और सफ़ेद (Pure White)
- तुहिन कण: ओस की बूंदें / बर्फ के कण (Dew drops)
- स्वर्णिम: सुनहरे रंग के (Golden)
💡 भावार्थ (Explanation):
कवि नागार्जुन कहते हैं कि मैंने हिमालय की बर्फ से ढकी निर्मल और सफ़ेद चोटियों पर बादलों को उमड़ते-घुमड़ते देखा है। जब बादलों से ओस की ठंडी बूंदें (तुहिन कण) मानसरोवर झील में खिले सुनहरे कमलों पर गिरती हैं, तो वे मोतियों जैसी चमकती हैं।
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| बादल को घिरते देखा है (Summary) | भावार्थ | Stanza-wise Meaning | Nagarjun |
2. हंसों का आगमन (Hans aur Jheel)
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी-बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर |
पावस की ऊमस से आकुल,
तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते,
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
📚 शब्दार्थ:
- तुंग: ऊँचा (High/Tall)
- श्यामल नील सलिल: सांवला नीला पानी
- पावस: वर्षा ऋतु
- विसतंतु: कमल-नाल के रेशे (Lotus fibers)
💡 भावार्थ (Explanation):
हिमालय की ऊंची चोटियों पर स्थित झीलों में, मैदानी इलाकों की भीषण गर्मी और उमस (पावस की ऊमस) से घबराकर हंस चले आते हैं। वे यहाँ के शीतल जल में ठंडक पाते हैं और भोजन के रूप में कड़वे-मीठे कमल की नाल (lotus fibers) खोजते हुए तैरते हैं।
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3. चकवा-चकई का मिलन (Vasant Ritu)
ऋतु वसंत का सुप्रभात था,
मंद-मंद था अनिल बह रहा,
बालारुण की मृदु किरणें थीं,
अगल-बगल स्वर्णिम शिखर था |
एक दूसरे से विरहित हो,
अलग-अलग रहकर ही जिनको,
सारी रात बितानी होती,
निशा काल से चिर-अभिशापित |
बेबस उस चकवा-चकई का,
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें,
उस महान सरवर के तीरे,
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
📚 शब्दार्थ:
- बालारुण: बाल सूर्य / उगता सूरज
- क्रंदन: रोना/दुःख
- चिर-अभिशापित: लंबे समय से शापित
- प्रणय-कलह: प्रेम भरी तकरार (Lovers' quarrel)
💡 भावार्थ (Explanation):
वसंत ऋतु की सुहानी सुबह है। चकवा और चकई पक्षी, जो शाप के कारण रात भर अलग रहते हैं और रोते हैं (क्रंदन), सुबह होते ही मिल जाते हैं। सरोवर के किनारे हरी काई (शैवाल) पर उनका प्रेम-झगड़ा (प्रणय-कलह) शुरू हो जाता है। यह वियोग के बाद संयोग का सुंदर चित्रण है।
4. कस्तूरी मृग की बेचैनी (Musk Deer)
दुर्गम बरफ़ानी घाटी में,
शत-सहस्र फुट ऊँचाई पर,
अलख नाभि से उठनेवाले,
निज के ही उन्मादक परिमल के |
पीछे धावित हो-होकर
तरल तरुण कस्तूरी मॄग को
अपने पर चिढ़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
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| बादल को घिरते देखा है (Summary) | भावार्थ | Stanza-wise Meaning | Nagarjun |
📚 शब्दार्थ:
- शत-सहस्र: लाखों
- अलख: जो दिखाई न दे
- उन्मादक परिमल: नशीली सुगंध
💡 भावार्थ (Explanation):
हजारों फीट की ऊंचाई पर कस्तूरी मृग (Musk Deer) अपनी ही नाभि की सुगंध से मदमस्त होकर दौड़ता है। उसे यह नहीं पता होता कि वह खुशबू उसके अपने भीतर है। जब वह उसे बाहर नहीं ढूंढ पाता, तो खीझकर खुद पर ही चिढ़ता है।
5. कालिदास और मेघदूत (व्यंग्य)
कहाँ गया धनपति कुबेर वह ?
कहाँ गई उसकी वह अलका ?
नहीं ठिकाना कालिदास के,
व्योम-प्रवाही गंगाजल का |
ढूँढ़ा बहुत परंतु लगा क्या,
मेघदूत का पता कहीं पर?
कौन बताए वह छायामय,
बरस पड़ा होगा न यहीं पर |
जाने दो, वह कवि-कल्पित था,
मैंने तो भीषण जाड़ों में,
नभ-चुंबी कैलाश शीर्ष पर,
महामेघ को झंझानिल से,
गरज-गरज भिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
📚 शब्दार्थ:
- व्योम-प्रवाही: आकाश में बहने वाली
- झंझानिल: तूफानी हवा
- कवि-कल्पित: कवि की कल्पना मात्र
💡 भावार्थ (Explanation):
कवि कालिदास के 'मेघदूत' की कल्पना पर व्यंग्य करते हैं। वे कहते हैं कि न कुबेर की अलका नगरी मिली, न मेघदूत का पता चला। शायद वह केवल कल्पना थी। मैंने तो असलियत में (भीषण जाड़ों में) बादलों को तूफानी हवाओं से कैलाश पर्वत पर भिड़ते देखा है। यह कोरी कल्पना नहीं, यथार्थ है।
6. किन्नर-किन्नरियों का जीवन
शत-शत, निर्झर-निर्झरणी-कल
मुखरित देवदारु कानन में,
शोणित धवल भोज पत्रों से
छाई हुई कुटी के भीतर |
रंग-बिरंगे और सुगंधित,
फूलों से कुंतल को साजे,
इंद्रनील की माला डाले,
शंख-सरीखे सुघढ़ गलों में,
कानों में कुवलय लटकाए,
शतदल लाल कमल वेणी में,
रजत-रचित मणि-खचित कलामय,
पान पात्र द्राक्षासव पूरित |
रखे सामने अपने-अपने
लोहित चंदन की त्रिपदी पर,
नरम निदाग बाल-कस्तूरी,
मृगछालों पर पलथी मारे,
मदिरारुण आँखोंवाले उन
उन्मद किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अँगुलियों को
वंशी पर फिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
📚 शब्दार्थ:
- शोणित धवल: लाल और सफ़ेद
- कुंतल: बाल (Hair)
- इंद्रनील: नीलम (Sapphire)
- द्राक्षासव: अंगूर की शराब (Wine)
- वंशी: बांसुरी
💡 भावार्थ (Explanation):
अंतिम पंक्तियों में हिमालय वासी किन्नर-किन्नरियों के विलासिता पूर्ण जीवन का चित्रण है। वे भोजपत्र की कुटिया में रहते हैं, उन्होंने अपने बालों में रंग-बिरंगे फूल सजाए हैं और गले में नीलम की माला पहनी है। वे अंगूर की मदिरा (द्राक्षासव) का पान कर रहे हैं और नशे से लाल आँखों के साथ बांसुरी बजा रहे हैं। कवि ने इस अद्भुत सौंदर्य को अपनी आँखों से देखा है।
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बादल को घिरते देखा है Summary (संक्षिप्त भावार्थ)
संक्षेप में, यह कविता हिमालय की नैसर्गिक सुंदरता का सजीव दस्तावेज है। इसमें कवि ने बादलों के घिरने, हंसों के तैरने, चकवा-चकई के प्रेम और कस्तूरी मृग की बेचैनी का वर्णन किया है। साथ ही, कवि ने कालिदास के काल्पनिक 'मेघदूत' के विपरीत प्रकृति के कठोर और यथार्थ रूप (तूफानी हवाओं और भीषण जाड़ों) को प्रस्तुत किया है। यह कविता प्रगतिवादी चेतना और सौंदर्यबोध का अद्भुत संगम है।
📝 Students Corner (निष्कर्ष)
यह कविता छायावादी कल्पनाशून्यता को तोड़कर यथार्थवादी प्रकृति का चित्र खींचती है।
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📥 Download PDF Notesमहत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर (FAQ)
1. 'बादल को घिरते देखा है' कविता का मूल भाव क्या है?
इस कविता में कवि नागार्जुन ने हिमालय के प्राकृतिक सौंदर्य, वर्षा ऋतु, वसंत, चकवा-चकई, कस्तूरी मृग और किन्नर-किन्नरियों के जीवन के माध्यम से यथार्थवादी प्रकृति का चित्रण किया है। यह छायावादी कल्पनाओं से अलग वास्तविक अनुभवों पर आधारित कविता है।
2. इस कविता में मुख्य रूप से किस ऋतु का वर्णन हुआ है?
‘बादल को घिरते देखा है’ कविता में मुख्य रूप से वर्षा ऋतु और वसंत ऋतु का चित्रण किया गया है। वर्षा ऋतु बादलों के घिरने और झीलों में दिखती है, जबकि वसंत ऋतु चकवा–चकई के मिलन में।
3. कस्तूरी मृग अपने ऊपर क्यों चिढ़ता है?
कस्तूरी मृग की नाभि में ही सुगंधित कस्तूरी होती है, लेकिन अज्ञानता के कारण वह उस सुगंध को जंगल भर में कहीं बाहर ढूंढता रहता है। जब उसे खुशबू का स्रोत नहीं मिलता तो वह झुँझलाकर अपने ऊपर ही चिढ़ जाता है।
4. कविता में कालिदास और मेघदूत का संदर्भ क्यों आया है?
नागार्जुन यथार्थवादी कवि हैं। वे कालिदास के काल्पनिक 'मेघदूत' और 'कुबेर की अलका' पर व्यंग्य करते हैं कि वास्तविकता में वहां केवल भीषण ठण्ड और बादल हैं, कोई काल्पनिक स्वर्ग नहीं।
5. यह कविता किस काव्य संग्रह से ली गई है?
यह कविता बाबा नागार्जुन के प्रसिद्ध काव्य संग्रह ‘युगधारा’ में संकलित है।
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Source text reference: Hindwi.org – बादल को घिरते देखा है



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