जुनि करू राम विरोग हे जननी | Vidyapati Maithili Geet जुनि करू राम विरोग हे जननी सुतल छलहुँ सपन एक देखल देखल अवधक लोक हे जननी दुइ पुरुष हम अबइत देखल एक श्यामल एक गोर हे जननी कंचन गढ़ हम जरइत देखल लंकामे उठल किलोल हे जननी सेतु बान्ह हम बन्हाइत देखल समुद्र मे उठल हिलोर हे जननी
Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita Maithili Poems Maithili Poems - Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita एत जप-तप हम की लागि कयलहु, कथि लय कयल नित दान। हमर धिया के इहो वर होयताह, आब नहिं रहत परान। नहिं छनि हर कें माय-बाप, नहिं छनि सोदर भाय। Maithili Poems - Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita मोर धिया जओं ससुर जयती, बइसती ककरा लग जाय। घास काटि लऔती बसहा च्रौरती, कुटती भांग–धथूर। एको पल गौरी बैसहु न पौती, रहती ठाढि हजूर। भनहि विद्यापति सुनु हे मनाइनि, दिढ़ करू अपन गेआन। Maithili Poems - Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita तीन लोक केर एहो छथि ठाकुर गौरा देवी जान। शिव को वर के रूप में देख कर माता को यह चिंता सता रही है कि ससुराल में पार्वती किसके साथ रहेगी –न सास है, न ससुर , कैसे उसका निर्वाह होगा ? सारा जप –तप उसका निरर्थक हो गया...यदि यही दिन देखना था तो ...देखें माँ का हाल - विद्यापति Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita Maithili Poems