सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Maithili Poems - Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita

Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita

Maithili Poems

Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita Maithili Poems

Maithili Poems - Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita

 एत जप-तप हम की लागि कयलहु,

कथि लय कयल नित दान।
हमर धिया के इहो वर होयताह,
आब नहिं रहत परान।
नहिं छनि हर कें माय-बाप,
नहिं छनि सोदर भाय।

Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita Maithili Poems

Maithili Poems - Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita

मोर धिया जओं ससुर जयती,
बइसती ककरा लग जाय।
घास काटि लऔती बसहा च्रौरती,
कुटती भांग–धथूर।
एको पल गौरी बैसहु न पौती,
रहती ठाढि हजूर।
भनहि विद्यापति सुनु हे मनाइनि,
दिढ़ करू अपन गेआन।

Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita Maithili Poems

Maithili Poems - Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita

तीन लोक केर एहो छथि ठाकुर
गौरा देवी जान।

शिव को वर के रूप में देख कर माता को यह चिंता सता रही है कि ससुराल में पार्वती किसके साथ रहेगी –न सास है, न ससुर , कैसे उसका निर्वाह होगा ? सारा जप –तप उसका निरर्थक हो गया...यदि यही दिन देखना था तो ...देखें माँ का हाल
-

विद्यापति

Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita Maithili Poems

Vidyapati Ji Ki Maithili Kavita

Maithili Poems

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Maithili Poems By Nagaarjun - विलाप | Maithili Kavita

Maithili Kavita Maithili Poems By Nagaarjun विलाप नान्हिटा छलौँ, दूध पिबैत रही राजा-रानीक कथा सुनैत रही घर-आँगनमे ओंघड़ाई छलौँ, कनिया-पुतरा खेलाइ छलौँ, मन ने पड़ै अछि, केना रही लोक कहै अछि, नेना रही माइक कोरामे दूध पिबैत बैसलि छलौँ उँघाइत झुकैत परतारि क' मड़वा पर बहीन ल' गेल की दन कहाँ दन भेलै, बिआह भ' गेल पैरमे होमक काठी गड़ल सीथमे जहिना सिन्नूर पड़ल वर मुदा अनचिन्हार छला फूसि न कहब, गोर नार छला अवस्था रहिन्ह बारहक करीब पढब गुनब तहूमे बड़ दीब अंगनहिमे बजलै केदन ई कथा सुमिरि सुमिरि आई होइये व्यथा सत्ते कहै छी, हम ने जनलिअइ हँसलिअइक ने, ने कने कनलिअइ बाबू जखन मानि लेलथीन सोझे वर्षे दुरागमनक दिन सिखौला पर हम कानब सीखल कपारमे मुदा छल कनबे लीखल सिन्नूर लहठी छल सोहागक चीन्ह हम बुझिअइ ने किछु उएह बुझथीन्ह रहै लगलौं भाइ-बहीन जकाँ खेलाय लगलौं राति-दिन जकाँ कोनो वस्तुक नहीं छल बिथूति कलेसक ने नाम दुखक ने छूति होम' लागल यौवन उदित होम' लागल प्रेम अंकुरित बारहम उतरल, तेरहम चढ़ल ज्ञान भेल रसक, सिनेह बढ़ल ओहो भ' गेला बेस समर्थ बूझै लगला संकेतक अर्थ सुखक दिन लगिचैल अबैत रहै मन

Maithili Deshbhakti Kavita - मिथिले - मैथिलि देशभक्ति कवितायेँ

Maithili Deshbhakti  Kavita मिथिले   मैथिलि देशभक्ति कवितायेँ बाबा नागार्जुन (यात्री) की मैथिलि कविता