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Maithili Poems By Nagaarjun - विलाप | Maithili Kavita

Maithili Kavita

Maithili Poems By Nagaarjun

विलाप


नान्हिटा छलौँ, दूध पिबैत रही
राजा-रानीक कथा सुनैत रही
घर-आँगनमे ओंघड़ाई छलौँ,
कनिया-पुतरा खेलाइ छलौँ,

मन ने पड़ै अछि, केना रही
लोक कहै अछि, नेना रही
माइक कोरामे दूध पिबैत
बैसलि छलौँ उँघाइत झुकैत

Maithili Poems By Nagaarjun - विलाप


परतारि क' मड़वा पर बहीन ल' गेल
की दन कहाँ दन भेलै, बिआह भ' गेल
पैरमे होमक काठी गड़ल
सीथमे जहिना सिन्नूर पड़ल

वर मुदा अनचिन्हार छला
फूसि न कहब, गोर नार छला
अवस्था रहिन्ह बारहक करीब
पढब गुनब तहूमे बड़ दीब

अंगनहिमे बजलै केदन ई कथा
सुमिरि सुमिरि आई होइये व्यथा
सत्ते कहै छी, हम ने जनलिअइ
हँसलिअइक ने, ने कने कनलिअइ

Maithili Poems By Nagaarjun - विलाप

बाबू जखन मानि लेलथीन
सोझे वर्षे दुरागमनक दिन
सिखौला पर हम कानब सीखल
कपारमे मुदा छल कनबे लीखल

सिन्नूर लहठी छल सोहागक चीन्ह
हम बुझिअइ ने किछु उएह बुझथीन्ह
रहै लगलौं भाइ-बहीन जकाँ
खेलाय लगलौं राति-दिन जकाँ

कोनो वस्तुक नहीं छल बिथूति
कलेसक ने नाम दुखक ने छूति
होम' लागल यौवन उदित
होम' लागल प्रेम अंकुरित

Maithili Poems By Nagaarjun - विलाप

बारहम उतरल, तेरहम चढ़ल
ज्ञान भेल रसक, सिनेह बढ़ल
ओहो भ' गेला बेस समर्थ
बूझै लगला संकेतक अर्थ

सुखक दिन लगिचैल अबैत रहै
मन आशाक मलार गबैत रहै
बन्हैत रही बेस मनोरथक पुल
विधाता बूझि पड़ै छल अनुकूल

दनादन दिन बितैत रहै
अभागलि हैब, से क्यौ ने कहै
एक दिन उठलिन्ह हुनका दर्द
टोल भरिमे भ' गेल आसमर्द

Maithili Poems By Nagaarjun - विलाप

कतै वैद डाकदर बजाओल गेला
तैयो ने हाय ओ नीकें भेला
बहार कै देलकन्हि लोग आबि क'
जान लै लेलकन्हि रोग आबि क'

बैतरणीमे उसरगल गेलन्हि बाछि
उठा क' ल' जाइत गेलथिन्ह गाछी
पोखरिपर लहठी फूटल हमर
सीथसँ सिन्नूर छूटल हमर

ठोहि पाड़िक हकन्न कनैत रही
एना हैत से की जनैत रही
लगै अछि चारू दिस अन्हार जकाँ
ने बुझि पड़ै क्यौ चिन्हार जकाँ

Maithili Poems By Nagaarjun - विलाप


विष सन अवस्था, पहाड़ सन जीवन
संसारमे हमर के अछि अपन ?
कानी तँ चुप कैनिहार क्यौ नहि
रूसी तँ बौंसनिहार क्यौ नहि

हम पड़लि छी टूटल पुल जकाँ
मौलैल, बिनु सूँघल फूल जकाँ
आगि छुबै छी तँ जरैत ने छी
माहुर खाई छी तँ मारैत ने छी

कोढ़ फाटै मुदा ने जाय जान
कोन पाप कैने छलौं हे भगवान
भरल आँगन सुन्न हमरा लेखै
फूजल घर निमुन्न हमरा लेखें

Maithili Poems By Nagaarjun - विलाप

लोक अलच्छि बुझैए, अशुभ बुझैए
अनेक नहि, से अपनो सुझैए
बिनु बजौने कतौ जाइ ने आबी
मुँहमे लगौने रहै छी जाबी

भुस्साक आगि जकाँ नहू नहू
जरै छी मने-मने हमहू
फटै छी कुसियारक पोर जकाँ
चैतक पछवामे ठोर जकाँ

काते रहै छी जनु घैल छुतहड़
आहि रे हम अभागली कत बड़
भिन्सरे उठि प्रात:स्नान क' क'
जप करै छी हुनके ध्यान ध' क'

जप करै छी हुनके ध्यान ध' क'


धर्मसँ जीवन बिताबै चाहै छी
इज्जति आबरू बचाबै चाहै छी
तैओ करै चाहै छथि हमरा नचार
केहेन केहेन ठोप चानन कैनिहार !

ओहनाक सङ्गे जँ हम खाधिमे खसी
ओ नुकैले रहता, हमर हैत हँसी
स्त्रीगणक जाती हम थिकौं अबला
तहू पर विधवा, कहू त भला !

पुरुषक जाती ओकरा के की कहतै
ओकरे समाज ओकरे बात रहतै
उठा लितथि बरु भगवान हमरो
कथी लै भारी लगितिअइ ककरो

कथी लै भारी लगितिअइ ककरो

मरब तँ कानत क्यौ नहिएँ
रहब तँ क्यौ जानत नहिएँ
इहो जीवन कोनो जीवन थीक
एहिसँ कुकुर-बिलाड़िए नीक

माय-बापक मनोरथक शिकार भ' क'
बेकार भ' क, दबल हाहाकार भ' क'
पँजियाड़ औ' घटकराजक नामपर
व्यवस्था औ' समाजक नामपर

विधवा हमरे सन हजारक हज़ार
बहौने जा रहलि अछि नोरक धार
ओहिमे ई मुलुक डूबि बरु जाय
ओहिमे लोक-वेद भसिया बरु जाय

ओहिमे लोक-वेद भसिया बरु जाय


अगड़ाही लगौ बरु बज्र खसौ
एहेन जाति पर बरु धसना धसौ
भूकम्प हौक बरु फटो धरती
माँ मिथिले रहिये क' की करती  !

-

नागार्जुन 

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