Bhaavik Peedhi Dard - भावी पीढ़ीक दर्द Maithili Poems By Upendra Doshi मीत ! अहाँक व्यवस्था बड़ तीत- इएह कहबा लेल हम बेर-बेर साहस क’ क’ जाइत छी मुदा, अहाँक कंचन-कादम्बक रसमे ओझरा क’ हम जिलेबीक रसमे अकबकाइत माछी भ’ जाइत छी अहाँक ‘जी हँ, जी हँ’क हेतु अभ्यस्त हमर जीह दोसरक व्यवहारक माधुर्यक भोग कर’ नहि दैत अछि। दोसरक यशःकाय शरीर लग पद-धूलि जकाँ झर’ नहि दैत अधि। मीत ! जखन-जखन अपन पुरखाक अरजल कर्जक दर्द हमर दड़कल करेजमे उठैत अछि, त’ भावी पीढ़ीक दर्द मोन पड़ि जाइत अछि आ’ अपन दर्दक संग हम भावी पीढ़ीक दर्दक अज्ञात पीड़ा भोग’ लगैत छी। अतीतकें तमसक गर्तमे गोंतनिहार , वर्तमान पर काजर पोतनिहार, आ भविष्य पर प्रश्न-चिन्ह टँगनिहार अहाँक दलाली नीति सभकें बूझल छैक। राजा जनकक धरती चीड़ब आ’ सीताकें धरतीसँ उपजि पुनि धरतीयेमे समा जाएब- किताबक पन्ना जकाँ खूजल छैक। तें, होइए चिकड़ि क’ गर्दमिसान क’ दी- ओ अजन्मा भगीरथ ! पहिने पीढ़ीक उद्धार करू तखन एहि बिकायलि धरती पर पैर धरू ओना, अहाँक नाम, महाजनक खातामे टिपा गेल अछि, सूदि सहित मूर सभ लिखा गेल अछि, जन्म लेवा सँक नाम, महाजनक खातामे टिपा गेल अछि, सूदि सहित मूर
स्वदेशमहिमा - Swadeshmahima Maithili Poem By सीताराम झा उत्कर्ष सम्प्रति पण्डितवृन्दक हो गणना, जहि रूप गणेशक सम्मुख, अंडिक तेलक दीपक टेम यथा लघु होइछ गेसक सम्मुख, स्वदेशमहिमा - Swadeshmahima Maithili Poem By सीताराम झा तुच्छ यथा चमरी-मृग पुच्छक बाल सुकामिनि-केशक सम्मुख, स्वर्ग तथा अपवर्ग दुहू सुख होइछ तुच्छ स्वदेशक सम्मुख। उदाहरण सोनक मन्दिरमे निशि-वासर वास, स्वयं टहलू पुनि भूपति, भोजन दाड़िम दाख, सुधा- रस-पान, सखा नरराजक सन्तति, पाठ सदा हरि-नाम सभा बिच, पाबि एते सुख-साधन सम्पति, नै बिसरै’ अछि कीर तथापि अहा ! निज नीड़ सम्बन्धुक संगति। निष्कर्ष मैथिल वृन्द ! उठू मिलि आबहूँ काज करू जकरा अछि जे सक, पैर विचारि धरू सब क्यौ तहि ठाम जतै नहि हो भय ठेसक, पालन जे न करैछ कुल-क्रम- आगत भाषण-भूषण-भेषक से लघु कूकूर-कीड़हुसौं जकरा नहि निश्छल भक्ति स्वदेशक । - सीताराम झा