"अंतिम प्रणाम" (Antim Pranaam) भारतीय साहित्य के प्रगतिशील स्तंभ, बाबा नागार्जुन 'यात्री' (Baba Nagarjun 'Yatri') द्वारा रचित एक अत्यंत मार्मिक मैथिलि कविता है। इस कविता में कवि अपनी मातृभूमि मिथिला से विदा लेते हुए अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। वैद्यनाथ मिश्र "यात्री" जी की यह कृति मैथिलि साहित्य में एक विशेष स्थान रखती है।
अंतिम प्रणाम - "यात्री"
हे मातृभूमि, अंतिम प्रणाम अहिबातक पातिल फोड़ि-फाड़ि पहिलुक परिचय सब तोड़ि-ताड़ि पुरजन-परिजन सब छोड़ि-छाड़ि हम जाय रहल छी आन ठाम माँ मिथिले, ई अंतिम प्रणाम दुःखओदधिसँ संतरण हेतु चिरविस्मृत वस्तुक स्मरण हेतु सूतल सृष्टिक जागरण हेतु हम छोड़ि रहल छी अपना गाम माँ मिथिले ई अंतिम प्रणाम कर्मक फल भोगथु बूढ़ बाप हम टा संतति, से हुनक पाप ई जानि ह्वैन्हि जनु मनस्ताप अनको बिसरक थिक हमर नाम माँ मिथिले, ई अंतिम प्रणाम!
कवि परिचय: वैद्यनाथ मिश्र "यात्री"
"यात्री" जी, जिन्हें हम बाबा नागार्जुन के नाम से भी जानते हैं, हिंदी, मैथिलि और संस्कृत के एक प्रमुख कवि और लेखक थे। उनका जन्म मिथिला के तरौनी गाँव में हुआ था। उनकी रचनाएँ सामाजिक यथार्थ और जन-चेतना का प्रतीक हैं।
यह भी पढ़ें:


टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें