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आन्हर जिनगी: बाबा नागार्जुन 'यात्री' की मैथिलि कविता | Aanhar Jinagi Poem

आन्हर जिनगी – बाबा नागार्जुन (यात्री) की मैथिलि कविता

बाबा नागार्जुन (वैद्यनाथ मिश्र) के प्रसिद्ध मैथिली कविता "आन्हर जिनगी" — जीवनक दार्शनिक चित्रण।

आन्हर जिनगी
सेहंताक ठेंगासँ थाहए
बाट घाट, आँतर-पाँतरकें
खुट खुट खुट खुट....

आन्हर जिनगी
चकुआएल अछि
ठाढ़ भेल अछि
युगसन्धिक अइ चउबट्टी लग
सुनय विवेकक कान पाथिकें
अदगोइ-बदगोइ

आन्हर जिनगी - बाबा नागार्जुन 'यात्री' मैथिलि कविता
आन्हर जिनगी — बाबा नागार्जुन (वैद्यनाथ मिश्र “यात्री”)

आन्हर जिनगी
नांगड़ि आशाकेर कान्ह पर हाथ राखि का’
कोम्हर जाए छएँ ?
ओ गबइत छउ बटगवनी,
तों गुम्म किएक छएँ ?
त’हूँ ध’ ले कोनो भनिता !

आन्हर जिनगी
शान्ति सुन्दरी केर नरम आंगुरक स्पर्शसँ
बिहुँसि रहल अछि!
खंड सफलता केर सलच्छा सिहकी
ओकर गत्र-गत्रमे
टटका स्पंदन भरि देलकइए।

- यात्री

कविक बारे मे: बाबा नागार्जुन "यात्री"

बाबा नागार्जुन, जिनका असल नाम वैद्यनाथ मिश्र "यात्री" छल, मैथिलि आ हिन्दी साहित्यक एकटा प्रमुख स्तंभ छथि। हुनकर कविता मे सामाजिक चेतना, शोषणक विरुद्ध आवाज आ गामक माटिक सुगंधि भेटैत अछि।

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Frequently Asked Questions (FAQ)

ई 'आन्हर जिनगी' कविता के लिखलनि?

ई प्रसिद्ध मैथिलि कविता बाबा नागार्जुन 'यात्री' (वैद्यनाथ मिश्र) द्वारा रचित अछि।

ई कविताक भाव की अछि?

'आन्हर जिनगी' एक दार्शनिक कविता अछि जे जीवनक अनिश्चितता आ विवेकक खोज केँ दर्शाबैत अछि।

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