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स्वदेशमहिमा - Swadeshmahima Maithili Poem By सीताराम झा

स्वदेशमहिमा - Swadeshmahima Maithili Poem By सीताराम झा उत्कर्ष सम्प्रति पण्डितवृन्दक हो गणना, जहि रूप गणेशक सम्मुख, अंडिक तेलक दीपक टेम यथा लघु होइछ गेसक सम्मुख, स्वदेशमहिमा - Swadeshmahima Maithili Poem By सीताराम झा तुच्छ यथा चमरी-मृग पुच्छक बाल सुकामिनि-केशक सम्मुख, स्वर्ग तथा अपवर्ग दुहू सुख होइछ तुच्छ स्वदेशक सम्मुख। उदाहरण सोनक मन्दिरमे निशि-वासर वास, स्वयं टहलू पुनि भूपति, भोजन दाड़िम दाख, सुधा- रस-पान, सखा नरराजक सन्तति, पाठ सदा हरि-नाम सभा बिच, पाबि एते सुख-साधन सम्पति, नै बिसरै’ अछि कीर तथापि अहा ! निज नीड़ सम्बन्धुक संगति। निष्कर्ष मैथिल वृन्द ! उठू मिलि आबहूँ काज करू जकरा अछि जे सक, पैर विचारि धरू सब क्यौ तहि ठाम जतै नहि हो भय ठेसक, पालन जे न करैछ कुल-क्रम- आगत भाषण-भूषण-भेषक से लघु कूकूर-कीड़हुसौं जकरा नहि निश्छल भक्ति स्वदेशक । - सीताराम झा