नवतुरिए आबओ आगाँ: बाबा नागार्जुन 'यात्री' की एक प्रखर मैथिलि कविता
बाबा नागार्जुन 'यात्री' जी मैथिलि साहित्यक ओहि प्रखर कवि छथि जे अपन कविता सँ समाज केँ नव दिशा देलनि। हुनकर ई कविता 'नवतुरिए आबओ आगाँ' एकटा एहनहि रचना अछि, जे पुरान रूढ़िवादी सोच केँ तोड़ैत नव पीढ़ी केँ आगाँ बढ़बाक आह्वान करैत अछि।
ई कविता एक तरहें 'सामाजिक देशभक्ति' केँ दर्शाबैत अछि, जतय देशक उन्नति लेल पुरान पड़ि चुकल परंपरा केँ छोड़ि नवतुरियाक विचार केँ स्वीकार करब आवश्यक अछि।
तीव्रगंधी तरल मोवाइल
क्षणस्पंदी जीवन
एक-एक सेकेंड बान्हल !
स्थायी-संचारी उद्दीपन-आलंबन....
सुनियन्त्रित एक-एक भाव !
परकीय-परकीया सोहाइ छइ ककरा नहि
खंड प्रीतिक सोन्हगर उपायन ?
सहृय नहि गृही चिरकुमारक दागल ब्रह्मचर्य
सरिपहुँ सभ केओ सर्वतंत्र स्वतंत्र
रोक टोक नहिए कथूक ककरो
रखने रहु, बेर पर आओत काज
आमौटक पुरान धड़िका....
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष !
पघिलओ नीक जकाँ सनातन आस्था
पाकओ नीक जकाँ चेतन कुम्हारक नबका बासन
युग-सत्यक आबामे....
जूनि करी परिबाहि बूढ़-बहीर कानक
टटका-मन्त्र थीक,
नवतुरिए आबओ आगाँ !!
वैह करत रूढ़िभंजन, आगू मुहें बढ़त वैह....
हमरा लोकनि दिअइ आशीर्वाद निश्छल मोने;
घिचिअइ टा नहि टांग पाछाँ...
ढेकी नहि कूटी अपनहि अमरत्व टाक...।
-
यात्री
कविक बारे मे: बाबा नागार्जुन "यात्री"
बाबा नागार्जुन, जिनका असल नाम वैद्यनाथ मिश्र "यात्री" छल, मैथिलि आ हिन्दी साहित्यक एकटा प्रमुख स्तंभ छथि। हुनका 'जनकवि' (जनताक कवि) केर रूप मे जानल जाइत अछि। 'यात्री' हुनकर मैथिलि उपनाम छल।
हुनकर कविता मे सामाजिक चेतना, शोषणक विरुद्ध आवाज आ गामक माटिक सुगंधि भेटैत अछि। मैथिलि साहित्य मे हुनकर योगदान, खास क' 'पत्रहीन नग्न गाछ' (जाहि लेल हुनका साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटल), अविस्मरणीय अछि। 'नब नचारी' हुनकर ओहि प्रखर व्यंग्य शैलीक एक बेहतरीन उदाहरण अछि।
अहाँक लेल आओर कविता
जँ अहाँ केँ ई कविता नीक लागल, तँ हमर ई संग्रह सेहो अवश्य पढ़ू:
अहाँक लेल आओर कविता
जँ अहाँ केँ ई कविता नीक लागल, तँ हमर ई संग्रह सेहो अवश्य पढ़ू:
हमर मैथिलि संग्रह सँ:
देवेन्द्र मिश्रक कविता:
"ई सभक मैथिलि" मैथिली के नइ बनियौ (अर्थ सहित) - मनोरंजन झामातृभाषा दिवस पर कविता: अपना माय के भाषा - अमर नाथ झा"ल." - एकटा मार्मिक मैथिलि कविता
हिन्दी साहित्यशाला सँ:
हिमान्शी बबरा की ग़ज़लें
अपन विचार साझा करू;-
बाबा नागार्जुनक एहि कविता पर अहाँक की विचार अछि?
ई कविता अहाँ केँ केहन लागल, अपन प्रतिक्रिया kavitasadan@gmail.com मे अवश्य लिखू।


टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें