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नवतुरिए आबओ आगाँ - यात्री मैथिलि कविता

नवतुरिए आबओ आगाँ..

मैथिलि देशभक्ति कवितायेँ

बाबा नागार्जुन (यात्री) की मैथिलि कविता

तीव्रगंधी तरल मोवाइल
क्षणस्पंदी जीवन
एक-एक सेकेंड बान्हल !
स्थायी-संचारी उद्दीपन-आलंबन....


सुनियन्त्रित एक-एक भाव !
परकीय-परकीया सोहाइ छइ ककरा नहि
खंड प्रीतिक सोन्हगर उपायन ?

नवतुरिए आबओ आगाँ - यात्री मैथिलि कविता
असहृय नहि कुमारी विधवाक सौभाग्य
सहृय नहि गृही चिरकुमारक दागल ब्रह्मचर्य
सरिपहुँ सभ केओ सर्वतंत्र स्वतंत्र
 
रोक टोक नहिए कथूक ककरो
रखने रहु, बेर पर आओत काज
आमौटक पुरान धड़िका....
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष !
 

पघिलओ नीक जकाँ सनातन आस्था
पाकओ नीक जकाँ चेतन कुम्हारक नबका बासन
युग-सत्यक आबामे....
जूनि करी परिबाहि बूढ़-बहीर कानक
 
टटका-मन्त्र थीक,
नवतुरिए आबओ आगाँ !!
वैह करत रूढ़िभंजन, आगू मुहें बढ़त वैह....
हमरा लोकनि दिअइ आशीर्वाद निश्छल मोने;
घिचिअइ टा नहि टांग पाछाँ...
ढेकी नहि कूटी अपनहि अमरत्व टाक...। 

 -

यात्री

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