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साओन-नागार्जुन की मैथिलि कविता

साओन

| बदल को घिरते देखा है - नागार्जुन की कविता |

वैद्यनाथ मिश्रा "यात्री" मैथिलि कविता 

Nagaarjun "Yatri" Maithili Poems

परतीक कोँढ़ - करेज जुड़ाएल
बाध - बोन हरिअर भऽ गेल
प्रकृति - नटि केर अंग अंग मेँ
महाकाल टेमी दऽ देल

नागार्जुन की हिंदी कवितायेँ
सर-सरिताकेँ भरल देखिकए
बिजुलत्ताकेँ सुझलइ खेल
बँसबारिक भगजोगनीं सभसँ
ओ धोछिया कए लेलक मेल
तामस उठलन्हि मेघराजकेँ
ठनका ठनकल डाँटक लेल
डूबल रहइ दोबगली लाइन
कहुना ससरल छोटकी रेल
धरतीक कोंढ़ करेज जुड़ाएल
बाध-बोन हरिअह भ’गेल। 


भीजल - तीतल, ध्वैल - नहाएल
सिमसिमाह ई साओन मास
कतबो झहरल मेघ तदपि अछि
रिमझिमाह ई साओन मास
अनका लेखेँ मजगर विधुरक
पिछड़ि - पिछड़ि कँऽखसथु राधिका
कान्ह क लेल हँसाओन मास
गाइनि लोकनिक हेतु मोदमय
कोहबर महक ओछाओन मास
तीसो दिन थिक मधुश्रावणी
नवतुरिआक चुमाओन मास
भीजल - तीतल ध्वैल - नहाएल
सिमसिमाह ई साओन मास

नागार्जुन की हिंदी कवितायेँ
मोट डारि मेँ मचकी बान्हल
झूलो झूलथु नन्दकिशोर
पलखति भेटन्हु नजरि बचा कएँ
नहू-नहू आवथु चितचोर
तिलक फूल सन रूचिर नासिका
मधुरी फूल जकाँ छन्हि ठोर
दूई देह छन्हि, एक परिस्थिति
एक प्राण छथि साँवर - गोर
किए कान्ह ओँधड़ेता भूपर
राधा किए बहओती नोर
आनक सुख - सोहाग देखतइ तऽ
किए हेतइ ककरो मन घोर
मोट डारिमेँ मचकी बान्हल
झूला झूलथु नन्दकिशोर
 


कान पाथि केँ सुनब पहर भरि
गावथु प्रौढ़ा लोकनि मलार
भीजब हम भरि पोख पहर भरि
बदरा बरसओ मूसलधार
चोभब राढ़ी आम भदइया
शलहेशक हम करब सिङार
बिशहराक गहबर ओगरब गऽ
देखब गऽ लाबाक पथार
सूपक सूप उझिलता अइखन
पाछाँ बरू भऽ जेता देखार
बिला जेता भादबमेँ बिलकुल
मेघक लीलो अपरम्पार
कान पाथि केँ सुनब पहरभरि
गावथु प्रौढ़ा लोकनि मलार

नागार्जुन की हिंदी कवितायेँ
 
लोचन-अंजन, जन मन रंजन
पावस ऋतु केँ करिअ प्रणाम
जनिक कृपासँ, जनिक स्नेहसँ
खेत-खेत कहवए वसुधाम
जनिक प्रतापेँ हरि विश्वंभर,
अन्नपूर्णा देवीक नाम
जनिक दया सँ वृक्ष वनस्पति
जनिक रसेँ फल-फूल ललाम
जनिकर ममतामय अनुशासन
गछने छथि ऋतुराज गुलाम
जनिक ऋणी छथि सातो सागर
जनिक प्रजा थिक सृष्टि तमाम
लोचन-अंजन, जन मन रंजन
पावस ऋतुकेँ करिअ प्रणाम 

नागार्जुन की हिंदी कवितायेँ

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