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लखिमा - वैद्यनाथ मिश्रा "यात्री" मैथिलि कविता | Lakhima Maithili Poem By Nagaarjun

लखिमा - वैद्यनाथ मिश्रा "यात्री" मैथिलि कविता | Lakhima Maithili Poem By Nagaarjun वैद्यनाथ मिश्रा "यात्री" मैथिलि कविता  Nagaarjun "Yatri" Maithili Poems कवि कोकिलक कल-काकलिक रसमञ्जरी लखिमा, अहाँ छलि हैब अद्भुत सुन्दरी रुष्ट होइतहुँ रूपसी कहि दैत कियो यदि अहाँ के विद्यापतिक कवी-प्रेयसी अहाँ अपने मौन रहितहुँ कहनिहारक मुदा भ जइतैक सत्यानाश ! मानित'थिन ईह ! सुनित'थिन शिवसिंह त' घिचबा लित'थिन जीह ! दित'थिन भकसी झोँकाय तुरंत क दित'थिन कविक आवागमन सहसा बंद अहूँ अन्तःपुरक भीतर बारिकँ अन्न- पानि सुभग सुन्दर कविक धारितहुँ ध्यान बूढि बहिकिरनीक द्वारा कोनो लाथें अहाँकें ओ पठबितथि सन्देश - (सङहि सङ झुल्फीक दुईटा केश !) विपुल वासन्ती विभवकेर बीच विकसित भेल कोनो फूलक लेल लगबथुन ग' क्यौ कतेको नागफेनिक बेढ मुदा तैँ की भ्रमर हैत निराश ? मधु-महोत्सव ओकर चलतई एहिना सदिकाल ! कहू की करथीन क्यौ भूपाल वा नभपाल अहाँ ओम्हर हम एम्हर छी बीच मे व्यवधान राजमहलक अति विकट प्राकार सुरक्षित अन्तःपुरक संसार किन्तु हम उठबैत छी कोखन...