प्रेरणा: बाबा नागार्जुन 'यात्री' की प्रसिद्ध मैथिलि कविता | Prerna Maithili Poem by Nagarjun
जगमे सभसौं पछुआयल छी,
मैथिल गण! आबहु आगु बढू;
निज अवनति-खाधिक बाधक भै
मिलि उन्नति-शिखरक उपर चढू।
अछि हाँइ-हाँइ कै लागि पड़ल
सभ अपना-अपना उन्नतिमे,
उत्थानक एहि सुभग क्षणमे
घर बैसि अहीं ने बात गढू।
‘राणा प्रताप, शिवराज, तिलक’
हिनका लोकनिक जीवन-कृति सैं,
तजि आलसकेँ प्रिय बन्धु वृन्द!
किछु सेवाभावक पाठ पढू।
भाषा, भूषा ओ भेष अपन हो
जगजियार झट जगभरिमे,
ई अटल प्रतिज्ञा ऐखन कै पुनि
मातृभूमि पर सोन मढू।
- यात्री
कविक बारे मे: बाबा नागार्जुन "यात्री"
बाबा नागार्जुन, जिनका असल नाम वैद्यनाथ मिश्र "यात्री" छल, मैथिलि आ हिन्दी साहित्यक एकटा प्रमुख स्तंभ छथि। हुनका 'जनकवि' (जनताक कवि) केर रूप मे जानल जाइत अछि। 'यात्री' हुनकर मैथिलि उपनाम छल।
हुनकर कविता मे सामाजिक चेतना, शोषणक विरुद्ध आवाज आ गामक माटिक सुगंधि भेटैत अछि। मैथिलि साहित्य मे हुनकर योगदान, खास क' 'पत्रहीन नग्न गाछ' (जाहि लेल हुनका साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटल), अविस्मरणीय अछि।
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