क्या आप ' मैथिल कवि कोकिल ' विद्यापति की प्रसिद्ध मैथिली कविताएँ खोज रहे हैं? इस लेख में, हम उनकी सबसे प्रशंसित रचनाओं में से एक, एक ' शिव नचारी ' (Shiv Nachari), को उसके मूल गीतों (lyrics) के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। इस मैथिली कविता के पीछे के गहरे भाव को आसानी से समझने के लिए, हम इसका सरल हिन्दी भावार्थ (Hindi Meaning) भी प्रदान कर रहे हैं। एत जप-तप हम की लागि कयलहु, कथि लय कयल नित दान। हमर धिया के इहो वर होयताह, आब नहिं रहत परान। नहिं छनि हर कें माय-बाप, नहिं छनि सोदर भाय। मोर धिया जओं ससुर जयती, बइसती ककरा लग जाय। घास काटि लऔती बसहा च्रौरती, कुटती भांग–धथूर। एको पल गौरी बैसहु न पौती, रहती ठाढि हजूर। भनहि विद्यापति सुनु हे मनाइनि, दिढ़ करू अपन गेआन। तीन लोक केर एहो छथि ठाकुर गौरा देवी जान। कवि परिचय: विद्यापति कवि विद्यापति (जन्म लगभग 1352-1448) एक महान मैथिली कवि और संस्कृत विद्वान थे, जिन्हें आदरपूर्वक 'मैथिल कवि कोकिल' (मिथिला का कोयल) कहा जाता है। वे विशेष रूप से राधा-कृष्ण के प्रेम वर्णन और भगवान शिव को समर्पित अपने भावपूर्ण 'नचारी' गीतों के ...
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