सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Maithili Poems | मिथिले - मैथिलि देशभक्ति कवितायेँ | Baba Nagaarjun

 

मिथिले 

मैथिलि देशभक्ति कवितायेँ

बाबा नागार्जुन (यात्री) की मैथिलि कविता

मुनिक शान्तिमय-पर्ण कुटीमे,
तापसीक अचपल भृकुटीमे |
साम श्रवणरत श्रुतिक पुटीमे,
छन अहाँक आवास ||
बिसरि गेल छी से हम,
किन्तु नै झाँपल अछि इतिहास |

Maithili Poem By Nagaarjun
यज्ञ धूम संकुचित नयनमे,
कामधेउनु-ख़ुर खनित अयन में |
मुनिक कन्याक प्रसून चयन में,
चल आहांक आमोद ||
स्मरणों जाकर करॆए अछि छन भरि,
सभ शोकक अपनोद |

शारदा-यति जयलापमे,
विद्यापति-कविता-कलापमे |
न्यायदेव नृप-पतिक प्रतापमे,
देखिय तोर महत्व ||
जाहि सं आनो कहेइच जे अछि,
मिथिलामे किछु तत्व |

कीर दम्पतिक तत्वादमे,
लखिमा कृत कविताक स्वादमे |
विजयि उद्यनक जयोन्माद मे,
अछि से अद्वूत शक्ति ||
जहि सं होएछ अधर्मारिकहुकें,
तव पद पंकज मे भक्ति |
Maithili Poem By Nagaarjun
धीर अयाची सागपात मे,
पद बद्ध प्रतिभा-प्रभातमे |
चल आहाँक उत्कर्ष,
ऒखन धरि जे झाप रहल अछि ||
हमर सभक अपकर्ष |

लक्ष्मीनाथक योगध्यान मे,
कवी चंद्रक कविताक गान में |
नृप रमशेवर उच्च ज्ञानमे,
आभा अमल आहाँक ||
विद्याबल विभवक गौरवमे,
अहँ ची थोर कहांक ? 

-

यात्री

बाबा नागार्जुन (यात्री) की मैथिलि कविता

मैथिलि देशभक्ति कवितायेँ

बाबा नागार्जुन की मैथिलि देशभक्ति कविता

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

नागार्जुन की मैथिली कविता 'विलाप' (अर्थ सहित) | Vilap by Nagarjun

नागार्जुन की प्रसिद्ध मैथिली कविता: विलाप विलाप - Vilap बाबा नागार्जुन: मैथिली के 'यात्री' बाबा नागार्जुन (मूल नाम: वैद्यनाथ मिश्र) को हिंदी साहित्य में उनके प्रगतिशील और जनवादी लेखन के लिए जाना जाता है। 'सिंदूर तिलकित भाल' जैसी उनकी हिंदी कविताएँ जितनी प्रसिद्ध हैं, उतना ही गहरा उनका मैथिली साहित्य में 'यात्री' उपनाम से दिया गया योगदान है। मैथिली उनकी मातृभाषा थी और उनकी मैथिली कविताओं में ग्रामीण जीवन, सामाजिक कुरीतियों और मानवीय संवेदनाओं का अद्भुत चित्रण मिलता है। 'विलाप' कविता का परिचय नागार्जुन की 'विलाप' (Vilap) मैथिली साहित्य की एक अत्यंत मार्मिक और प्रसिद्ध कविता है। यह कविता, उनकी अन्य मैथिली कविताओं की तरह ही, सामाजिक यथार्थ पर गहरी चोट करती है। 'विलाप' का मुख्य विषय समाज की सबसे दर्दनाक कुरीतियों में से एक— बाल विवाह (Child Marriage) —और उसके फलस्वरूप मिलने वाले वैधव्य (Widowhood) की पीड़ा है। यह कविता एक ऐसी ही बाल विधवा की मनोदशा का सजीव चित्रण करती है। नान्हिटा छलौँ, दूध पिबैत रही राजा-रानीक कथा सुनैत रही घर-आँग...

Vidyapati Poems in Maithili & Hindi | विद्यापति की कविता | शिव नचारी Lyrics

क्या आप ' मैथिल कवि कोकिल ' विद्यापति की प्रसिद्ध मैथिली कविताएँ खोज रहे हैं? इस लेख में, हम उनकी सबसे प्रशंसित रचनाओं में से एक, एक ' शिव नचारी ' (Shiv Nachari), को उसके मूल गीतों (lyrics) के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। इस मैथिली कविता के पीछे के गहरे भाव को आसानी से समझने के लिए, हम इसका सरल हिन्दी भावार्थ (Hindi Meaning) भी प्रदान कर रहे हैं। एत जप-तप हम की लागि कयलहु, कथि लय कयल नित दान। हमर धिया के इहो वर होयताह, आब नहिं रहत परान। नहिं छनि हर कें माय-बाप, नहिं छनि सोदर भाय। मोर धिया जओं ससुर जयती, बइसती ककरा लग जाय। घास काटि लऔती बसहा च्रौरती, कुटती भांग–धथूर। एको पल गौरी बैसहु न पौती, रहती ठाढि हजूर। भनहि विद्यापति सुनु हे मनाइनि, दिढ़ करू अपन गेआन। तीन लोक केर एहो छथि ठाकुर गौरा देवी जान। कवि परिचय: विद्यापति कवि विद्यापति (जन्म लगभग 1352-1448) एक महान मैथिली कवि और संस्कृत विद्वान थे, जिन्हें आदरपूर्वक 'मैथिल कवि कोकिल' (मिथिला का कोयल) कहा जाता है। वे विशेष रूप से राधा-कृष्ण के प्रेम वर्णन और भगवान शिव को समर्पित अपने भावपूर्ण 'नचारी' गीतों के ...

Maithili Deshbhakti Kavita - मिथिले - मैथिलि देशभक्ति कवितायेँ

Maithili Deshbhakti  Kavita मिथिले   मैथिलि देशभक्ति कवितायेँ बाबा नागार्जुन (यात्री) की मैथिलि कविता