सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

नवंबर, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Vidyapati Poems in Maithili & Hindi | विद्यापति की कविता | शिव नचारी Lyrics

क्या आप ' मैथिल कवि कोकिल ' विद्यापति की प्रसिद्ध मैथिली कविताएँ खोज रहे हैं? इस लेख में, हम उनकी सबसे प्रशंसित रचनाओं में से एक, एक ' शिव नचारी ' (Shiv Nachari), को उसके मूल गीतों (lyrics) के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। इस मैथिली कविता के पीछे के गहरे भाव को आसानी से समझने के लिए, हम इसका सरल हिन्दी भावार्थ (Hindi Meaning) भी प्रदान कर रहे हैं। शिव नचारी एत जप-तप हम की लागि कयलहु, कथि लय कयल नित दान। हमर धिया के इहो वर होयताह, आब नहिं रहत परान। नहिं छनि हर कें माय-बाप, नहिं छनि सोदर भाय। मोर धिया जओं ससुर जयती, बइसती ककरा लग जाय। घास काटि लऔती बसहा च्रौरती, कुटती भांग–धथूर। एको पल गौरी बैसहु न पौती, रहती ठाढि हजूर। भनहि विद्यापति सुनु हे मनाइनि, दिढ़ करू अपन गेआन। तीन लोक केर एहो छथि ठाकुर गौरा देवी जान। Vidyapati Poems in Maithili & Hindi कवि परिचय: विद्यापति कवि विद्यापति (जन्म लगभग 1352-1448) एक महान मैथिली कवि और संस्कृत विद्वान थे, जिन्हें आदरपूर्वक 'मैथिल कवि कोकिल' (मिथिला का कोयल) कहा जाता है। वे विशेष रूप से राधा-कृष्ण के प्रेम वर्णन और भगवान शिव ...

Kavik Swapn by Yatri | कविक स्वप्न: बाबा नागार्जुन की क्रांतिकारी मैथिली कविता

कविक स्वप्न (Kavik Swapn) वैद्यनाथ मिश्र "यात्री" (बाबा नागार्जुन) की कालजयी मैथिली कविता परिचय: 'कविक स्वप्न' बाबा नागार्जुन (मैथिली में 'यात्री') की एक अत्यंत प्रभावशाली कविता है। यह कविता केवल कल्पना की उड़ान नहीं है, बल्कि यह कवि की अंतरात्मा का वह द्वंद्व है जहाँ वह अपनी 'रोमानियत' को छोड़कर 'यथार्थ' (Social Realism) की कठोर धरती पर उतरता है। जिस तरह हिंदी साहित्य में हम रश्मिरथी के पात्रों में संघर्ष देखते हैं, वैसी ही वैचारिक क्रांति यात्री जी की इस कविता में है। जननि हे! सूतल छलहुँ हम रातिमे नीन छल आयल कतेक प्रयाससँ। स्वप्न देखल जे अहाँ उतरैत छी, एकसरि नहुँ-नहुँ विमल आकाशसँ। फेर देखल-जे कने चिन्तित जकाँ कविक एहि कुटीरमे बैसलि रही। वस्त्र छल तीतल, चभच्चामे मने कमल तोड़ै लै अहाँ पैसलि रही। श्वेत कमलक हरित कान्ति मृणालसँ बान्हि देलहुँ हमर दूनू हाथकेँ। हम संशकित आँखि धरि मुनने छलहुँ, स्नेहसँ सूँघल अहाँ ता’ ...

अंतिम प्रणाम - "यात्री" मैथिलि कविता | बाबा नागार्जुन की श्रेष्ठ रचना

"अंतिम प्रणाम" (Antim Pranaam) भारतीय साहित्य के प्रगतिशील स्तंभ, बाबा नागार्जुन 'यात्री' (Baba Nagarjun 'Yatri') द्वारा रचित एक अत्यंत मार्मिक मैथिलि कविता है। इस कविता में कवि अपनी मातृभूमि मिथिला से विदा लेते हुए अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। वैद्यनाथ मिश्र "यात्री" जी की यह कृति मैथिलि साहित्य में एक विशेष स्थान रखती है। अंतिम प्रणाम - "यात्री" हे मातृभूमि, अंतिम प्रणाम अहिबातक पातिल फोड़ि-फाड़ि पहिलुक परिचय सब तोड़ि-ताड़ि पुरजन-परिजन सब छोड़ि-छाड़ि हम जाय रहल छी आन ठाम माँ मिथिले, ई अंतिम प्रणाम दुःखओदधिसँ संतरण हेतु चिरविस्मृत वस्तुक स्मरण हेतु सूतल सृष्टिक जागरण हेतु हम छोड़ि रहल छी अपना गाम माँ मिथिले ई अंतिम प्रणाम कर्मक फल भोगथु बूढ़ बाप हम टा संतति, से हुनक पाप ई जानि ह्वैन्हि जनु मनस्ताप अनको बिसरक थिक हमर नाम माँ मिथिले, ई अंतिम प्रणाम! कवि परिचय: वैद्यनाथ मिश्र " यात्री " "यात्री" जी, जिन्हें हम बाबा नागार्जुन के नाम से भी जानते हैं, हिंदी, मैथिलि और संस्कृत के एक प्रमुख कवि और लेखक थे। उ...

छीप पर रहओ नचैत – यात्री | बाबा नागार्जुन की मैथिलि कविता

छीप पर रहओ नचैत – यात्री | बाबा नागार्जुन की मैथिलि कविता "छीप पर रहओ नचैत" वैद्यनाथ मिश्रा "यात्री" (बाबा नागार्जुन) द्वारा रचित एक सुंदर मैथिलि कविता अछि। ई कविता दीप, ज्योति आ जीवनक प्रतीकों द्वारा मानव अस्तित्वक पक्ष केँ उघाड़ैत अछि। छीप पर रहओ नचैत कनकाभ शिखा उगिलैत रहओ स्निग्ध बाती भरि राति मृदु - मृदु तरल ज्योति नाचथु शलभ - समाज उत्तेजित आबथु जाथु होएत हमर अंगराग हुतात्मक भस्म सगौरव सुप्रतिष्ठ हरितहि हम रहबे छीप पर रहओ नचैत — बाबा नागार्जुन (यात्री) दीअटिक जड़िसँ के करत बेदखल हमरा ने जानि, कहिआ, कोन युगमेँ भेटल छल वरदान आकल्प हम रहल बइसल दीप देवताक कोर मेँ - यात्री कविक बारे मे: बाबा नागार्जुन "यात्री" बाबा नागार्जुन, जिनका असल नाम वैद्यनाथ मिश्र "यात्री" छल, मैथिलि आ हिन्दी साहित्यक एकटा प्रमुख स्तंभ छथि। हुनकर कविता मे सामाजिक चेतना, शोषणक विरुद्ध ...

आन्हर जिनगी: बाबा नागार्जुन 'यात्री' की मैथिलि कविता | Aanhar Jinagi Poem

आन्हर जिनगी – बाबा नागार्जुन (यात्री) की मैथिलि कविता बाबा नागार्जुन (वैद्यनाथ मिश्र) के प्रसिद्ध मैथिली कविता "आन्हर जिनगी" — जीवनक दार्शनिक चित्रण। आन्हर जिनगी सेहंताक ठेंगासँ थाहए बाट घाट, आँतर-पाँतरकें खुट खुट खुट खुट.... आन्हर जिनगी चकुआएल अछि ठाढ़ भेल अछि युगसन्धिक अइ चउबट्टी लग सुनय विवेकक कान पाथिकें अदगोइ-बदगोइ आन्हर जिनगी — बाबा नागार्जुन (वैद्यनाथ मिश्र “यात्री”) आन्हर जिनगी नांगड़ि आशाकेर कान्ह पर हाथ राखि का’ कोम्हर जाए छएँ ? ओ गबइत छउ बटगवनी, तों गुम्म किएक छएँ ? त’हूँ ध’ ले कोनो भनिता ! आन्हर जिनगी शान्ति सुन्दरी केर नरम आंगुरक स्पर्शसँ बिहुँसि रहल अछि! खंड सफलता केर सलच्छा सिहकी ओकर गत्र-गत्रमे टटका स्पंदन भरि देलकइए। - यात्री ...

प्रेरणा: बाबा नागार्जुन 'यात्री' की प्रसिद्ध मैथिलि कविता | Prerna Maithili Poem by Nagarjun

🔥 New Release: "संयुक्ताक्षर" (Sanyuktakshar) - Read the viral poem defining Love through Grammar प्रेरणा: बाबा नागार्जुन 'यात्री' की प्रसिद्ध मैथिलि कविता | Prerna Maithili Poem by Nagarjun जगमे सभसौं पछुआयल छी, मैथिल गण! आबहु आगु बढू; निज अवनति-खाधिक बाधक भै मिलि उन्नति-शिखरक उपर चढू। अछि हाँइ-हाँइ कै लागि पड़ल सभ अपना-अपना उन्नतिमे, उत्थानक एहि सुभग क्षणमे घर बैसि अहीं ने बात गढू। ‘राणा प्रताप, शिवराज, तिलक’ हिनका लोकनिक जीवन-कृति सैं, तजि आलसकेँ प्रिय बन्धु वृन्द! किछु सेवाभावक पाठ पढू। भाषा, भूषा ओ भेष अपन हो जगजियार झट जगभरिमे, ई अटल प्रतिज्ञा ऐखन कै पुनि मातृभूमि पर सोन मढू। - यात्री कविक बारे मे: बाबा नागार्जुन "यात्री" बाबा नागार्जुन, जिनका असल नाम वैद्यनाथ मिश्र "यात्री" छल, मैथिलि आ हिन्दी साहित्यक एकटा प्रमुख स्तंभ छथि। हुनका ' जनकवि ' (जनताक कवि) केर रूप मे जानल जाइत अछि। 'यात्री' हुनकर मैथिलि उपनाम छल। हुनकर कविता मे सामाजिक चेतना, शोष...

नवतुरिए आबओ आगाँ: बाबा नागार्जुन 'यात्री' की प्रसिद्ध मैथिलि कविता | Progressive Maithili Poem

नवतुरिए आबओ आगाँ: बाबा नागार्जुन 'यात्री' की एक प्रखर मैथिलि कविता बाबा नागार्जुन 'यात्री' जी मैथिलि साहित्यक ओहि प्रखर कवि छथि जे अपन कविता सँ समाज केँ नव दिशा देलनि। हुनकर ई कविता 'नवतुरिए आबओ आगाँ' एकटा एहनहि रचना अछि, जे पुरान रूढ़िवादी सोच केँ तोड़ैत नव पीढ़ी केँ आगाँ बढ़बाक आह्वान करैत अछि। ई कविता एक तरहें 'सामाजिक देशभक्ति' केँ दर्शाबैत अछि, जतय देशक उन्नति लेल पुरान पड़ि चुकल परंपरा केँ छोड़ि नवतुरियाक विचार केँ स्वीकार करब आवश्यक अछि। तीव्रगंधी तरल मोवाइल क्षणस्पंदी जीवन एक-एक सेकेंड बान्हल ! स्थायी-संचारी उद्दीपन-आलंबन.... सुनियन्त्रित एक-एक भाव ! परकीय-परकीया सोहाइ छइ ककरा नहि खंड प्रीतिक सोन्हगर उपायन ? असहृय नहि कुमारी विधवाक सौभाग्य सहृय नहि गृही चिरकुमारक दागल ब्रह्मचर्य सरिपहुँ सभ केओ सर्वतंत्र स्वतंत्र   रोक टोक नहिए कथूक ककरो रखने रहु, बेर पर आओत काज आमौटक पुरान धड़िका.... धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष !   पघिलओ नीक जकाँ सनातन आस्था पाकओ नीक जकाँ चेतन कुम्हारक नबका बासन युग-सत्यक आबामे.... जूनि करी परिबाहि बूढ़-बहीर कानक   ...

भारत माता: बाबा नागार्जुन 'यात्री' की प्रसिद्ध मैथिलि कविता | Bharat Mata Poem by Nagarjun (Yatri)

भारत माता: बाबा नागार्जुन 'यात्री' की प्रसिद्ध मैथिलि कविता | Bharat Mata Poem by Nagarjun बाबा नागार्जुन (यात्री) की मैथिलि कविता  कियै टूटल जननि! धैर्यक सेतु? कानि रहलहुँ अछि, अरे! की हेतु? अहा! जागल आइ कटु-स्मृति कोन? जाहिसँ भै गेल व्याकुल मोन? विश्वभरिमे विदित नाम अहाँक! कान्तियो नयनाभिराम अहाँक! केहन उज्ज्वल मा! अहाँक अतीत भेलहुँ अछि पुनि कोन भयसँ भीत?   जलधि-वसने! हिम-किरीटिनि देवि! तव चरण-पंकज युगलकेँ सेवि, लोक कहबै अछि अरे! तिहुँ लोक! अहीं केँ चिन्ता, अहीकेँ शोक!! कहू जननी कियै नोर बहैछ छाड़ि रहलहुँ अछि कियै निःश्वास? कोन आकस्मिक विषादक हेतु भै रहल अछि मूँह एहन उदास?  - यात्री मैथिलि देशभक्ति कवितायेँ भारत माता पर मैथिलि देशभक्ति कविता कवि परिचय: बाबा नागार्जुन 'यात्री हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम कवि बाबा नागार्जुन का वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था। मैथिली साहित्य में वे अपने उपनाम 'यात्री' से प्रसिद्ध हुए। उनका जन्म 1911 में बिहार के मधुबनी जिले के तरौनी गाँव में हुआ था। उन्हें "जनकवि" (जनता का कवि) के रूप में जाना जाता है क्यों...