मातृभाषा का सम्मान: अमरनाथ झा की कविता 'अपन मायके भाषा' | Matrabhasha Maithili Ka Sammaan मातृभाषा का महत्व: 'अपन मायके भाषा' कविता का भाव Poem on International Mother Language Day: हर साल 21 फरवरी को विश्व मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमें हमारी जड़ों से, हमारी पहचान की सबसे पहली ध्वनि से जोड़ता है - हमारी माँ की भाषा। इसी भावना को केंद्र में रखकर कवि श्री अमरनाथ झा ने अपनी कलम से एक अद्भुत रचना को जन्म दिया ہے, जो हर मैथिल के हृदय को छू लेती है। यह कविता केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि अपनी भाषा के प्रति सम्मान, प्रेम और कर्तव्य का एक शक्तिशाली अनुस्मारक है। यह हमें बताती है कि दुनिया की कोई भी भाषा सीख लेना सफलता हो सकती है, लेकिन अपनी मातृभाषा में जीना और सोचना ही वास्तविक आत्म-गौरव है।
नब नचारी (Nab Nachari) - बाबा नागार्जुन "यात्री" | Maithili Poem वैद्यनाथ मिश्रा "यात्री" मैथिलि कविता प्रस्तुत अछि मैथिलिक महान जनकवि बाबा नागार्जुन "यात्री" जीक कालजयी व्यंग्य कविता 'नब नचारी' (Nab Nachari)। ई कविता बाबा बैद्यनाथ (शिव) केँ संबोधित करैत, समाज मे व्याप्त गरीबी, पाखंड आ व्यवस्थाक विफलता पर एकटा तीक्ष्ण प्रहार अछि। 'यात्री' जीक ई प्रसिद्ध मैथिलि कविता (Maithili Poem) अपन बेबाक अंदाज़क लेल जानल जाइत अछि। पूरा कविता नीचाँ पढ़ी बाबा नागार्जुन मैथिलि कविता अगड़ाही लागउ, वज्र खसउ, बरू किच्छु होउक... नहि नबतै तोरा खातिर किन्नहु हमर माथ ! पाथर भेलाह तों सरिपहुँ बाबा बैदनाथ ! बेत्रेक अन्न भ’ रहल आँट नेना-भुटका दुबरैल आंगुरें कल्लर सभ बीछए झिटुका मकड़ाक जालसँ बेढ़ल छइ चुलहाक मूँह थारी-गिलास सब बेचि बिकिनि खा गेलइ, ऊँह कैंचा जकरा से, खाए भात क’ रहल मौज से, जकरा छइ कोनो गतात सरकारी राशन द’ रहलइए- अन्हरागाँही चउबरदामे चाँइ-चोर आन्हर-बहीर, बम्भोला ! तोरा पर उठैत अछि तामस हमरा बड्ड जोर गौरी पहिरथि फाटल भूआ कार्तिक-गणेश छथि गीड़ि रहल उ...