कल्पना कीजिए एक ऐसी रात की, जहाँ नींद में देखा गया एक सपना किसी विशाल साम्राज्य के पतन की भविष्यवाणी बन जाए। मैथिली साहित्य के अनमोल खजाने में, महाकवि विद्यापति का गीत "जुनि करू राम विरोग" एक ऐसी ही कालजयी रचना है। आमतौर पर हम महाकवि विद्यापति को उनके श्रृंगार रस या भगवान शिव की नचारी के लिए जानते हैं। लेकिन, यह गीत हमें 'रामायण' के उस प्रसंग में ले जाता है जहाँ लंका की रानी मंदोदरी (या संभवतः त्रिजटा) एक भयावह स्वप्न देखती हैं। यह स्वप्न लंका के विनाश और प्रभु श्रीराम की विजय का संकेत है। A cinematic depiction of the "Kanchan Gadh" (Golden Fortress) ablaze. सदियों से गाया जाने वाला यह गीत आज भी प्रासंगिक है। साहित्याशाला (Sahityashala) के इस ब्लॉग में, हम इस गीत के मूल बोल, इसका विस्तृत हिंदी भावार्थ और इसके साहित्यिक महत्व का विश्लेषण कर रहे हैं। गीत: एक नज़र में रचनाकार: महाकवि विद्यापति (को...
क्या प्रेम में डूबा हुआ ह्रदय शब्दों की मार सह सकता है? वैद्यनाथ मिश्र "यात्री" , जिन्हें हिंदी साहित्य जगत "बाबा नागार्जुन" के नाम से जानता है, अपनी विद्रोही कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। लेकिन, जब वही विद्रोही 'यात्री' बनकर मैथिली में कलम उठाते हैं, तो शब्द फूल बनकर बरसते हैं। वैद्यनाथ मिश्र "यात्री" आज हम उनकी कालजयी रचना "सुजन नयन मनि" का पाठ और विश्लेषण करेंगे। जहाँ बादल को घिरते देखा है में वे प्रकृति के चितेरे हैं, वहीं इस कविता में वे महाकवि विद्यापति की शृंगार परंपरा को आगे बढ़ाते हुए नज़र आते हैं। आइये, 2025 के परिप्रेक्ष्य में इस कविता के मर्म को समझते हैं। सुजन नयन मनि (मूल कविता) सुजन नयन मनि सुनु सुनु सुनु धनि मथित करिअ जनि पिअ हिअ गनि गनि शित शर हनि हनि, सुनु सुनु सुनु धनि मनमथ रथ बनि विपद हरिअ तनि ...