नब नचारी (Nab Nachari) - बाबा नागार्जुन "यात्री" | Maithili Poem
वैद्यनाथ मिश्रा "यात्री" मैथिलि कविता
बरू किच्छु होउक...
नहि नबतै तोरा खातिर किन्नहु हमर माथ !
पाथर भेलाह तों सरिपहुँ बाबा बैदनाथ !

बेत्रेक अन्न भ’ रहल आँट नेना-भुटका
दुबरैल आंगुरें कल्लर सभ बीछए झिटुका
मकड़ाक जालसँ बेढ़ल छइ चुलहाक मूँह
थारी-गिलास सब बेचि बिकिनि खा गेलइ, ऊँह
कैंचा जकरा से, खाए भात
क’ रहल मौज से, जकरा छइ कोनो गतात
सरकारी राशन द’ रहलइए-
अन्हरागाँही चउबरदामे चाँइ-चोर
आन्हर-बहीर, बम्भोला !
तोरा पर उठैत अछि तामस हमरा बड्ड जोर
गौरी पहिरथि फाटल भूआ
कार्तिक-गणेश छथि गीड़ि रहल
उसिनल अगबे अल्हुआक पात
बइमान बापसँ की माँगथु ग’ दालि-भात
अपने पबैत छह भोग छप्पनो परकारक
अनका लेखें तँ दुर्लभ छइ आको धथूर
बुझि पड़ितहु जँ सुनितहक-
उपासल कमरथुआ केर मुइल सूर !
बरू किच्छु कह’
पचकल लोढ़ा, तों धन्न रह’
नहि आब नचारी केओ गओतहु !
जे बूड़ि हैत से बोकिअओतहु !
माटिक महत्तवकें चीन्हि लेलक ई देश-कोश !
पाथर भेलाह तों सरिपहुँ बाबा बैदनाथ !
नहि नबतै तोरा खातिर किन्नहु हमर माथ !
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यात्री
बाबा नागार्जुन मैथिलि कविता
वैद्यनाथ मिश्रा "यात्री" मैथिलि कविता
कविक बारे मे: बाबा नागार्जुन "यात्री"
बाबा नागार्जुन, जिनका असल नाम वैद्यनाथ मिश्र "यात्री" छल, मैथिलि आ हिन्दी साहित्यक एकटा प्रमुख स्तंभ छथि। हुनका 'जनकवि' (जनताक कवि) केर रूप मे जानल जाइत अछि। 'यात्री' हुनकर मैथिलि उपनाम छल।
हुनकर कविता मे सामाजिक चेतना, शोषणक विरुद्ध आवाज आ गामक माटिक सुगंधि भेटैत अछि। मैथिलि साहित्य मे हुनकर योगदान, खास क' 'पत्रहीन नग्न गाछ' (जाहि लेल हुनका साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटल), अविस्मरणीय अछि। 'नब नचारी' हुनकर ओहि प्रखर व्यंग्य शैलीक एक बेहतरीन उदाहरण अछि।
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