मिथिला की पावन भूमि पर भक्ति की पराकाष्ठा का यदि कोई प्रमाण है, तो वह महाकवि विद्यापति और भगवान शिव (उगना) की कथा है। जब त्रिभुवन के स्वामी एक भक्त के प्रेम में बंधकर 'चाकर' (नौकर) बन गए, तो इतिहास रचा गया।
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| यह वही ऐतिहासिक क्षण है जब रेगिस्तान में प्यासे महाकवि विद्यापति को 'उगना' बने भगवान शिव ने जल पिलाया। इसी घटना से उनका भेद खुला और कालांतर में 'उगना रे मोर कतय गेला' नचारी की रचना हुई। |
आज हम विद्यापति की उस प्रसिद्ध नचारी (Nachari) "उगना रे मोर कतय गेला" का विश्लेषण करेंगे। यह रचना केवल एक Maithili Kavita नहीं, बल्कि एक भक्त का करुण विलाप है। साहित्य जगत में अक्सर यह बहस होती है कि विद्यापति भक्त कवि थे या शृंगारिक, परन्तु इस नचारी को पढ़कर उनकी निश्छल भक्ति का ही प्रमाण मिलता है।
इस लेख में आप पढ़ेंगे:
उगना और विद्यापति: भक्ति की एक अमर कथा
किंवदंतियों और ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, विद्यापति की शिव भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव एक साधारण मजदूर 'उगना' के रूप में उनकी सेवा करने आए। शर्त केवल यह थी कि जिस दिन उनका भेद खुलेगा, वे अंतर्ध्यान हो जाएंगे।
वर्षों तक शिव ने विद्यापति की सेवा की। एक दिन, जब विद्यापति की पत्नी सुशीला ने कार्य में देरी होने पर उगना को जलती हुई लकड़ी (लुकाठी) से मारने का प्रयास किया, तो विद्यापति से रहा न गया। उन्होंने चिल्लाकर रोका— "साक्षात महादेव पर प्रहार न करो!" भेद खुलते ही शिव अंतर्ध्यान हो गए और विद्यापति विरह की अग्नि में जलते हुए यह नचारी गाने लगे।
उगना रे मोर कतए गेलाह (Maithili Lyrics)
उगना रे मोर कतए गेलाह,
कतए गेला शिव कीदहु भेलाह।
भांग नहि बटुआ रुसि बैसलाह,
जोहि हेरि अनि देल हँसि उठलाह।
जे मोर उगनाक कहत उद्देश,
ताहि देव ओकर कंगन संदेश।
नन्दन वन बीच भेटल महेस,
गौरी मन हरषित भेटल कलेस।
विद्यापति मन उगना सो काज,
नहि हितकर मोर त्रिभुवन राज।
Ugna Re Mor Katai Gela Lyrics (Hinglish)
Ugna re mor katae gelāh,
katae gelā Shiv keedahu bhelāh.
Bhaang nahi batuwa rusi baisalāh,
johi heri ani del, hansi uthalāh.
Je mor Ugnā-k kahat udesh,
tahi Dev okar kangana sandesh.
Nandan van beech bhetal Mahesh,
Gauri man harshit, bhetal kalesh.
Vidyapati man — Ugna so kāj,
nahi hitkar mor Tribhuvan-rāj.
Watch Video: Ugna Re Mor Katai Gela
हिंदी अर्थ (Hindi Meaning)
1. विरह और खोज
पंक्ति: उगना रे मोर कतए गेलाह...
अर्थ: हे मेरे उगना! तुम कहाँ चले गए? मेरे शिव कहाँ लुप्त हो गए? क्या कोई अनहोनी हो गई या वे मुझसे रूठ गए हैं?
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| भक्त और भगवान के बीच के अटूट बंधन का प्रतीक। यह चित्र दर्शाता है कि कैसे त्रिभुवन के स्वामी शिव, विद्यापति के प्रेम के वशीभूत होकर उनका हाथ थामने धरती पर चले आए। |
2. स्मृतियाँ
पंक्ति: भांग नहि बटुआ रुसि बैसलाह...
अर्थ: अक्सर जब तुम्हारे बटुए (झोले) में भांग नहीं होती थी, तो तुम बच्चों की तरह रूठ कर बैठ जाते थे। और जब मैं ढूंढकर (जोहि हेरि) तुम्हारे लिए भांग लाता था, तो तुम हँस पड़ते थे।
3. पुरस्कार की घोषणा
पंक्ति: जे मोर उगनाक कहत उद्देश...
अर्थ: जो कोई भी मुझे मेरे उगना का पता (उद्देश्य) बता देगा, उसे मैं इनाम के तौर पर अपने कंगन दे दूंगा।
4. अंतिम सत्य
पंक्ति: विद्यापति मन उगना सो काज...
अर्थ: विद्यापति कहते हैं— "मुझे तो मेरे 'उगना' से काम है। मुझे उस 'त्रिभुवनराज' (तीनों लोकों के स्वामी) से कोई लेना-देना नहीं, मुझे मेरा अपना सखा उगना चाहिए।"
मैथिली साहित्य की अन्य मणियाँ:
विद्यापति की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले कवियों में बाबा नागार्जुन का नाम सर्वोपरि है। आप उनकी रचनाएँ यहाँ पढ़ सकते हैं:
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1. उगना महादेव का मंदिर कहाँ स्थित है?
उगना महादेव का प्रसिद्ध मंदिर बिहार के मधुबनी जिले के भवानीपुर गांव में स्थित है।
Q2. 'नहि हितकर मोर त्रिभुवनराज' का क्या अर्थ है?
इसका अर्थ है कि भक्त को ईश्वर के ऐश्वर्यशाली रूप (त्रिभुवन पति) से अधिक प्रिय उनका मानवीय और सखा रूप (उगना) है।
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