वंदना
वैद्यनाथ मिश्रा "यात्री" मैथिलि कविता
Nagaarjun "Yatri" Maithili Poems
हे तिरहुत, हे मिथिले, ललाम !
मम मातृभूमि, शत-शत प्रणाम !
तृण तरु शोभित धनधान्य भरित
अपरूप छटा, छवि स्निग्ध-हरित
शिर शोभित हिमगिरि निर्झरणा
गंडकि गाबथि दहिना जहिना
कौसिकि नाचथि वामा तहिना
धेमुड़ा त्रियुगा जीबछ करेह
कमला बागमतिसँ सिक्त देह
अनुपम अद्भुत तव स्वर्णांचल
की की न फुलाए फड़ए प्रतिपल
जय पतिव्रता सीता भगवति
जय कर्मयोगरत जनक नृपति
जय-जय गौतम, जय याज्ञवल्कय
जय-जय वात्स्यायन जय मंडन
जय-जय वाचस्पति जय उदयन
गंगेश पक्षधर सन महान
दार्शनिक छला’, छथि विद्यमान
जगभर विश्रुत अछि ज्ञानदान
जय-जय कविकोकिल विद्यापति
यश जनिक आइधरि सब गाबथि
दशदिश विख्यापित गुणगरिमा
जय-जय भारति जय जय लखिमा
जय लाख-लाख मिथिलाक पुत्र
अपनहि हाथे हम सोझराएब
अपनेक देशक शासनक सूत्र
बाभन छत्री औ’ भुमिहार
कायस्थ सूँड़ि औ’ रोनियार
कोइरी कुर्मी औ’ गोंढि-गोआर
धानुक अमात केओट मलाह
खतबे ततमा पासी चमार
बरही सोनार धोबि कमार
सैअद पठान मोमिन मीयाँ
जोलहा धुनियाँ कुजरा तुरुक
मुसहड़ दुसाध ओ डोम-नट्ट...
भले हो हिन्नू भले मुसलमान
मिथिलाक माटिपर बसनिहार
मिथिलाक अन्नसँ पुष्ट देह
सरिपहुँ सभ केओ मैथिले थीक
दुविधा कथीक संशय कथीक ?
ई देश-कोश ई बाध-बोन
ई चास-बास ई माटि पानि
सभटा हमरे लोकनिक थीक
दुविधा कथीक संशय कथीक ?
जय-जय हे मिथिला माता
सोनित बोकरए जँ जुअएल जोंक,
तँ सफल तोहर बर्छीक नोंक !
खएता न अयाची आब साग !
ककरो खसतैक किएक पाग ?
केओ आब कथी लै मूर्ख रहत ?
केओ आब कथी लै कष्ट सहत ?
केओ किअए हएत भूखैं तबाह ?
केओ केअए हएत फिकरें बताह ?
नहि पड़ल रहत, भेटतैक काज !
सभ करत मौज, सभ करत राज !
पढ़ता गुनता करता पास-
जूगल कामति, छीतन खवास
जे काजुल से भरि पेट खएत
ककरो नहि बड़का धोधि हएत
केवल कामेश्वरसिंह काल्हि
हमरालोकनि जे खाइत छी
खएताह ओहो से भात-दालि
अछि भेल कतेको युग पछाति
ई महादेश स्वाधीन आइ
दिल्ली पटना ओ दड़िभंगा
फहराइछ सभटा तिनरंगा
दुर्मद मानव म्रियमाण आइ
माटिक कण कण सप्राण आइ
नव तंत्र मंत्र चिंता धारा
नव सूर्य चंद्र नवग्रह तारा
हे हरित भरित हे ललित भेस
हे छोट छीन सन हमर देश
हे मातृभूमि, शत-शत प्रणाम!!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें