छीप पर रहओ नचैत / यात्री
"यात्री" मैथिलि कविता
छीप पर रहओ नचैत
कनकाभ शिखा
उगिलैत रहओ स्निग्ध बाती
भरि राति मृदु - मृदु तरल ज्योति
नाचथु शलभ - समाज
उत्तेजित आबथु जाथु
होएत हमर अंगराग हुतात्मक भस्म
सगौरव सुप्रतिष्ठ हरितहि हम रहबे
दीअटिक जड़िसँ के करत बेदखल हमरा
ने जानि, कहिआ, कोन युगमेँ
भेटल छल वरदान
आकल्प हम रहल बइसल दीप देवताक कोर मेँ
ने जानि, कहिआ, कोन युगमेँ
भेटल छल वरदान
आकल्प हम रहल बइसल दीप देवताक कोर मेँ
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यात्री
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